जब दारा सिंह ने 200 किलो के किंग कॉन्ग को सिर के ऊपर उठाया और…. इतिहास में दर्ज है ये मुकाबला

2025-07-14 01:50
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दारा सिंह की पुण्यतिथि: दारा सिंह ने कुश्ती में 500 मैचों में अपराजित रहते हुए अभिनय में भी अपनी पहचान बनाई. 12 जुलाई 2012 को उनका निधन हुआ था.

जब दारा सिंह ने 200 किलो के किंग कॉन्ग को सिर के ऊपर उठाया और…. इतिहास में दर्ज है ये मुकाबला 

Dara Singh's Death Anniversary: पंजाब के शेर दारा सिंह एक जमाने में फ्री स्टाइल कुश्ती में दुनिया के सबसे बड़ पहलवान थे. उन्होंने अपने करियर में 500 मुकाबले लड़े और अपराजित रहे. उनका निधन 12 जुलाई 2012 को मुंबई...

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पंजाब का यह शेर आज भी कई लोगों के जेहन में एक मीठी याद बनकर ताजा है.

दारा सिंह ने 500 कुश्ती मुकाबले लड़े लेकिन एक में भी नहीं हारे

दारा सिंह ने किंग कॉन्ग को सिर के ऊपर उठाकर रिंग से बाहर फेंका

दारा सिंह ने रामायण में हनुमान की भूमिका निभाकर पहचान बनाई

भले ही हमारे बीच न हों पर उन्होंने जीवन में कई काम बेहतरीन ढंग से किए. कुश्ती खेली तो ऐसी कि 500 मैचों में उन्हें कोई हरा नहीं पाया. अभिनय किया तो ऐसा कि आज भी लोग रामायण के हनुमान को भुलाए नहीं भूलते. पंजाब का यह शेर आज भी कई लोगों के जेहन में एक मीठी याद बनकर ताजा है. अपने जमाने के विश्व प्रसिद्ध फ्रीस्टाइल पहलवान दारा सिंह का आज ही के दिन यानी 12 जुलाई 2012 को मुंबई में निधन हुआ था. उनका पूरा नाम दीदार सिंह रंधावा था, लेकिन उन्हें दारा सिंह के नाम से ही ख्याति मिली.

19 नवंबर 1928 को जन्मे दारा सिंह का बचपन में बेहद मजबूत कद काठी के कारण पहलवानी की तरफ रुझान बढ़ता गया. 

दारा सिंह का एक छोटा भाई सरदारा सिंह भी था जिसे लोग रंधावा के नाम से जानते थे. दारा सिंह और रंधावा दोनों ने मिलकर पहलवानी करनी शुरू कर दी. धीरे-धीरे गांव के दंगलों से लेकर शहरों तक में ताबड़तोड़ कुश्तियां जीतकर अपने गांव का नाम रोशन किया. दारा सिंह मेलों में और राजा महाराजाओं के कहने पर भी कुश्ती किया करते थे.

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500 मुकाबले लड़े, एक भी नहीं हारा

दारा सिंह ने प्रोफेशनल रेसलर के तौर पर कई पूर्वी देशों का दौरा किया था. वह 1947 में सिंगापुर गए थे जहां उन्होंने तारलोक सिंह को हराकर चैंपियन ऑफ मलेशिया का खिताब जीता था. मलेशियन खिताब जीतने के बाद 1954 में दारा फिर भारतीय चैंपियन बने थे. दारा ने 1959 में पूर्व विश्व चैंपियन जार्ज गोर्डिएन्को को हरा कॉमनवेल्थ चैंपियनशिप जीती थी. 1968 में वह अमेरिका के विश्व चैंपियन लाऊ थेज को पराजित कर फ्रीस्टाइल कुश्ती के विश्व चैंपियन बने थे. उन्होंने 55 की उम्र तक पहलवानी की और 500 मुकाबलों में किसी एक में भी हार का मुंह नहीं देखा.

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किंग कॉन्ग के साथ उनके मुकाबलों में भारी भीड़ उमड़ती थी.

इतिहास में दर्ज है किंग कॉन्ग के साथ कुश्ती

दारा सिंह को हमेशा किंग कॉन्ग के साथ हुए उनके मुकाबले के लिए जाना जाता रहेगा. कुश्ती के मैदान में हुए सबसे रोमांचक मुकाबलों में से एक में 130 किलो वजन वाले दारा सिंह ने किंग कॉन्ग को अपने सिर के ऊपर उठाकर नाटकीय अंदाज में घुमाया. इस पर किंग कॉन्ग ने रेफरी पर चिल्लाते हुए उसे याद दिलाया कि ऐसा करना नियमों के विरुद्ध है. जब रेफरी ने आकर इसे रोकने की कोशिश की तो दारा सिंह ने ऑस्ट्रेलियाई पहलवान को रिंग से बाहर फेंक दिया और वह भीड़ से कुछ ही फीट की दूरी पर गिर गया. दारा सिंह द्वारा लगाया गया ये दांव देखकर दर्शकों ने दांतों तले उंगलियां दबा ली थी. किंग कॉन्ग के साथ उनके मुकाबलों में भारी भीड़ उमड़ती थी. जो उनकी ताकत और कौशल के प्रदर्शन से मंत्रमुग्ध हो जाते थे.

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अपने दौर के सभी बड़े पहलवानों को हराया

दारा सिंह और किंग कॉन्ग के अलावा फ्लैश गॉर्डन तीसरे पहलवान थे जिन्होंने 1950 के दशक में रिंग पर राज किया.

एजेंटों द्वारा बनाए गए मिथकों ने इन पहलवानों को अजेय पुरुष बना दिया. इसलिए उन्हें रिंग में लड़ते देखना दो अजेय पहलवानों को एक-दूसरे को बर्बाद करने की कोशिश करते हुए देखने जैसा था. दारा सिंह जहां ढेर सारी रोटियां खा जाते थे, वहीं किंग कॉन्ग दर्जनों मुर्गियां खा जाते थे. दारा सिंह ने लगभग 500 पेशेवर मुकाबलों में भाग लिया, जिनमें वे सभी में अपराजित रहे. उन्होंने कनाडा के जॉर्ज गोर्डिएन्को और न्यूजीलैंड के जॉन डेसिल्वा जैसे महानतम पहलवानों के साथ मुकाबला किया. उन्होंने अपने कुश्ती कौशल के लिए ‘रुस्तम-ए-पंजाब’ और ‘रुस्तम-ए-हिंद’ की उपाधि जीती.

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1983 में लड़ा आखिरी मुकाबला

1983 में उन्होंने अपने जीवन का आखिरी मुकाबला जीतने के बाद कुश्ती से सम्मानपूर्वक संन्यास ले लिया था. दिल्ली में हुए जिस टूर्नामेंट में उन्होंने अपने संन्यास की घोषणा की थी उसका टूर्नामेंट का उद्धघाटन पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने किया था. पूर्व राष्ट्रपति ज्ञानी जेल सिंह ने जीतने वालों को ट्रॉफी प्रदान की थी. 19 नवंबर 1928 को जन्मे दारा सिंह को कम उम्र में ही घर वालों ने उनकी मर्जी के बिना उनसे उम्र में बहुत बड़ी लड़की से शादी कर दी. वो 17 साल की उम्र में पिता बन गए. दारा सिंह ने दो शादियां की थीं. इनसे उनके तीन बेटे और तीन बेटियां थीं. विंदु दारा सिंह भी उनके बेटे हैं.

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फिल्मों में भी जमायी धाक

दारा सिंह ने पचास के दशक में फिल्म उद्योग में प्रवेश किया. दारा सिंह ने अपने फिल्मी करियर की शुरुआत 1952 में फिल्म संगदिल से की थी. उन्होंने आगे जाकर कई फिल्मों में अभिनय किया और कुछ फिल्में प्रोड्यूस भी कीं. हालांकि, उनकी ज्यादातर फिल्मों को बी – ग्रेड कैटेगरी का ही माना जाता था. लेकिन इसके अलावा भी उन्होंने बॉलीवुड के टॉप सितारों के साथ काम किया था. दारा सिंह ने कई बड़ी फिल्मों जैसे मेरा नाम जोकर, अजूबा, दिल्लगी, कल हो न हो और जब वी मेट जैसी फिल्मों में काम किया था. उन्होंने कई हिंदी और पंजाबी फिल्में बनाई जिसमें उन्होंने खुद मुख्य भूमिका निभाई थी.

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दारा सिंह ने मुमताज को दिया था बॉलीवुड में ब्रेक.

16 फिल्मों मे उनकी हीरोइन रहीं मुमताज

दारा सिंह के बेहद बलशाली होने की वजह से उस जमाने की अदाकाराएं उनके साथ काम करने से कतराती थीं. उनकी बेहद मजबूत कद काठी की वजह से ज्यादातर एक्ट्रेस ने उनके साथ काम करने से मना कर दिया था. मुमताज को बॉलीवुड में पर्दापण कराने वाले दारा सिंह ने इस अभिनेत्री के साथ 16 फिल्मों में काम किया था. 1980 और 90 के दशक में दारा सिंह ने टीवी का रुख किया था. अपने समय के ऐतिहासिक सीरियल रामायण में भगवान हनुमान की भूमिका निभाकर वह घर-घर में जबरदस्त पहचान बनाने में कामयाब हुए थे. 

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राजनीति में भी आजमाया हाथ

खेल और सिनेमा के अलावा दारा सिंह ने राजनीति में भी हाथ आजमाया. वह देश के पहले खिलाड़ी थे जिन्हें राज्यसभा के लिए किसी राजनीतिक पार्टी ने नामित किया था. भारतीय जनता पार्टी ने उन्हें 2003-2009 तक राज्य सभा का सदस्य बनाया. फिल्म निर्देशक मनमोहन देसाई ने एक बार उनके लिए कहा था कि मैं अमिताभ बच्चन को लेकर फिल्म मर्द बना रहा था और मैं सोच रहा था कि उनके पिता का रोल कौन निभा सकता है? मुझे लगा कि अगर मैं अमिताभ को मर्द की भूमिका में ले रहा हूं तो जाहिर है मर्द का बाप तो दारा सिंह ही होना चाहिए. उनकी तारीफ में इससे बेहतर कुछ कहा ही नहीं जा सकता.  

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