पूर्व पीएम जवाहर लाल नेहरू से क्यों मिलना चाहते थे दारा सिंह? मुलाकात पर कही थी ये बड़ी बात

2025-07-14 01:50
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Dara Singh: जीवनी में दारा सिंह ने लिखा है कि मेरे नेहरू जी से मिलने के तीन मकसद थे।एक मकसद था उन्हें नमस्ते करके बातचीत करने का ताकि मैं कह सकूं कि मैं प्रधान मंत्री को निजी तौर पर जानता हूं। दूसरा मकसद यह था कि 1959 में दिल्ली में राष्ट्रमंडल चैंपियनशीप के दंगल चल रहे थे। इन कुश्तियों में पंडित ज

पूर्व पीएम जवाहर लाल नेहरू से क्यों मिलना चाहते थे दारा सिंह? मुलाकात पर कही थी ये बड़ी बात

Dara Singh: जीवनी में दारा सिंह ने लिखा है कि मेरे नेहरू जी से मिलने के तीन मकसद थे।एक मकसद था उन्हें नमस्ते करके बातचीत करने का ताकि मैं कह सकूं कि मैं प्रधान मंत्री को निजी तौर पर जानता हूं। दूसरा मकसद यह था कि 1959 में दिल्ली में राष्ट्रमंडल चैंपियनशीप के दंगल चल रहे थे। इन कुश्तियों में पंडित जी मैं बुलाना चाहता था। दिल्ली में कुश्तियों के प्रमोटर मिस्टर गोगी थे

प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू से मिलने की बड़ी इच्छा थी,इसलिए दारा सिंह ने उन्हें पत्र लिखा।

प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू से मिलने की बड़ी इच्छा थी, इसलिए दारा सिंह ने उन्हें पत्र लिखा।

एक सप्ताह बाद उनके सचिव का होटल जनपथ में फोन आया और दारा सिंह से पूछा कि किस काम के लिए

चाहते हैं ? दारा सिंह ने कहा कि ‘जी मैं कुश्तियां लड़ता हुआ दुनिया का दौरा करके आया हूं। कुश्तियों में मेरा नाम दुनिया के एक नंबर के पहलवानों में है। बस पंडित जी के दर्शन करने की इच्छा है।’

उसने कहा कि ठीक है और उन्होंने हमें तीन दिन बाद मिलने का समय दे दिया।

1952 में पहली बार फिल्म में नजर आए दारा सिंह

दारा सिंह ने पहली बार सन 1952 में मद्रास की एक फिल्म के लिए कुश्ती लड़ी थी,पर वे हिंदी फिल्म किंगकांग के साथ मशहूर हो गये।धारावाहिक ‘रामायण’ में पवनसुत हनुमान की भूमिका के कारण दारा सिंह घर -घर में लोकप्रिय हो गये। हालांकि कुश्ती के क्षेत्र में दुनिया भर में नाम कमाने वाले दारा सिंह की शोहरत उनकी कुछ मशहूर मुकाबलों और उनमें उनकी विजय के कारण ही रही।

दारा सिंह ने अपनी जीवनी पहले पंजाबी में लिखी,बाद में उसका हिंदी अनुवाद भी हुआ।

पंडित नेहरू से मिलने के तीन मकसद

जीवनी में दारा सिंह ने लिखा है कि मेरे नेहरू जी से मिलने के तीन मकसद थे।एक मकसद था उन्हें नमस्ते करके बातचीत करने का ताकि मैं कह सकूं कि मैं प्रधान मंत्री को निजी तौर पर जानता हूं। दूसरा मकसद यह था कि 1959 में दिल्ली में राष्ट्रमंडल चैंपियनशीप के दंगल चल रहे थे। इन कुश्तियों में पंडित जी मैं बुलाना चाहता था।

दिल्ली में कुश्तियों के प्रमोटर मिस्टर गोगी थे। उनके जीवन की बड़ी ख्वाहिश थी पंडित जी से भेंट करने की।तीसरा मकसद गोगी को मिलाने का था।

इसलिए पंडित जी को मैंने पत्र लिखा था।

मैं,मेरा भाई रंधावा और गोगी तय समय पर प्रधान मंत्री आवास पहुंचे।

हमारे अलावा मिलने वाले वहां कई और भी थे।

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मैंने सचिव से कहा कि यहां तो बहुत भीड़ है।मुलाकात कैसे होगी ? इस पर उसने कहा कि आपने सिर्फ दर्शन

के लिए कहा था।इसलिए आपको इस तरह का समय

गया है।क्योंकि सप्ताह में एक दिन पंडित जी सिर्फ अपने दर्शनाभिलाषियों से मिलते हैं।फिर भी मैं उन्हें कह दूंगा।आपको कोई बात करनी हो तो खड़े -खड़े कर लेना।

हम भी लोगों से थोड़ा हट कर एक जगह खड़े हो गये। जब पंडित जी हमारे पास आये तो सचिव ने कहा कि ये हैं पहलवान दारा सिंह,रंधावा और गोगी।पंडित जी ने हमसे हाथ मिलाया और पूछा कि कौन -कौन से देशों से दौरा करके आये हो ?

रूस,ब्रिटेन,यूरोप,कनाडा और अमेरिका।

उन्होंने दूसरा सवाल किया,हमारे और विदेशी पहलवानों में क्या अंतर है ?

मैंने कहा कि वहां की एसोसिएशन बहुत मजबूत है।वही पहलवानों की देखभाल करती है।

हमारे यहां पहलवानों को अपनी देखरेख खुद करनी पड़ती है।इस पर पंडित जी ने कहा कि तो फिर आप भी भारत में एसोसिएशन बनाओ।

मैंने सोचा कि इतना बड़ा काम मैं अकेला कैसे कर सकता हूं।फिर भी मैंने कहा कि जी मैं कोशिश करूंगा।

मैंने यह भी कहा कि दिल्ली में दंगल चल रहे हैं।आप एक दिन पधारें तो बहुत मेहरबानी होगी।

इस पर वे बोले,अरे, मैं दंगल देखने कैसे आ सकता हूं ? मेरी छाती पर तो आस्ट्रेलिया का प्रधानमंत्री बैठा हुआ है।उसने मुझे चित्त किया हुआ है।

इसलिए मेरे पास समय नहीं है।

मनवेल्थ चैंपियनशीप हो रही है।अगर आप आएंगे तो पहलवानों के हौसले बुलंद होंगे।

इस पर बोले कि मेरे आने से पहलवानों को उत्साह मिलेगा ?

मैंने कहा कि हमारे हौसले तो इतने बढ़ जाएंगे कि मैं बयान नहीं कर सकता।

उन्होंने जाने का इंतजाम करने के लिए सचिव से कह दिया ।

पंडित जी ने सचिव से कहा कि इन्हें खिलाए-पिलाए बिना नहीं भेजना।

फिर सचिव हमें दूसरे कमरे में ले गया जहां राजीव,संजय और अमिताभ बच्चन हमसे मिलने आये।

ये तीनों उस समय बहुत छोटे थे।हमने बैठकर चाय पी।फोटो खींचे गये।

अमिताभ थोड़ा दूर जाकर खड़ा हो गया।जब तक राजीव ने उसे फोटो के लिए नहीं बुलाया,वह आगे नहीं आया।

इंदिरा जी के साथ भी फोटो लिये गये।

कुश्ती के दिन पंडित जी के साथ राजीव और संजय भी कुश्ती देखने आये।

उस दिन कुश्तियों का टेस्ट मैच था।मैं और मेरा भाई रंधावा एक तरफ और

किंगकांग और आस्टे्रलिया का जीन मर्फी दूसरी तरफ।पंडित जी के आने पर हमारी कुश्ती शुरू हुई।आये तो सिर्फ दस मिनट के लिए ,पर बैठे रहे 50 मिनट।

मैंने और रंधावा ने कुश्ती जीत ली।

कुश्ती के बाद पंडित जी विशेष रूप से हमसे मिल कर गये।

उस वक्त उनका चेहरा कह रहा था कि वे बहुत खुश थे।

बाद में हमारे प्रमोटर ने हमें बताया कि जब कुश्ती चल रही थी तो उनका सचिव बार- बार उन्हें चलने की याद दिलाता रहा।

इस पर वह कह दे रहे थे कि ‘थोड़ी देर बाद।’

और इसी तरह कुश्ती खत्म हो गई।

हम कुश्ती के बाद जब पंडित जी को कार तक छोड़ने गये तो नारों से स्टेडियम गूंज रहा था।

मुझे मास्को के स्टेडियम की याद आई।जिस तरह मास्को में नारा लगता था-पंडित जी और राज कपूर का,इस समय दिल्ली में लग रहा था-पंडित जवाहर लाल नेहरू की जय ! दारा सिंह की जय !

इसके बाद राजीव और संजय मेरे दंगल देखने कई बार आये और मुझसे एक खास मेल मिलाप हो गया।

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